पटना में बनेगा राज्य का पहला मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क
30 सितंबर, 2022 को बिहार में उद्योग विभाग के प्रधान सचिव संदीप पौंड्रिक ने बताया कि पटना ज़िले के जैतिया गाँव के समीप सौ एकड़
ज़मीन में राज्य का पहला मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क विकसित किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
ज्ञातव्य है कि मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क एक प्रकार से वृहत् वेयरहाउस होता है, जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होता है। यहाँ कोल्ड
स्टोरेज, मशीनीकृत हैंडलिंग, बड़े-बड़े वाहनों के लिये पार्किंग व कस्टम क्लियरेंस की व्यवस्था रहती है।
अभी तक बिहार में एक भी लॉजिस्टिक पार्क नहीं है। इसके बनने के बाद ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने उत्पाद को स्टोर करने में सुविधा हो
जाएगी।
पटना ज़िले के जैतिया गाँव के समीप यह जगह निर्माणाधीन आमस-दरभंगा फोरलेन के समीप है जिसके कारण इसे कई ज़िलों की सीधी
कनेक्टिविटी मिलेगी। इसके अतिरिक्त यह नेऊरा-दनियावां रेललाइन के भी करीब है। इस कारण रेल संपर्कता भी है।
हाल के दिनों में कई बड़ेनिवेशकों ने बिहार में लॉजिस्टिक पार्क विकसित किये जाने में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। इनमें अडानी समूह,
ओसवाल ग्रुप, टीवीएस समूह व कुछ अन्य समूह हैं। इनके द्वारा लॉजिस्टिक पार्क के लिये संगठित क्षेत्र तैयार किया जाएगा।
उद्योग विभाग के आला अधिकारियों ने बताया कि उद्योग विभाग जल्द ही अपनी लॉजिस्टिक पॉलिसी लाने की तैयारी में भी है।
बिहार में ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार का बड़ेस्तर पर विस्तार हुआ है। इनकी समस्या यह है कि इन्हें अपने उत्पाद को स्टोर कर रखने
के लिये पर्याप्त संख्या में वेयरहाउस नहीं है। परिवहन शुल्क भी बढ़ जाता है। लॉजिस्टिक पार्क रहने से इन्हें अपने उत्पादों को स्टोर कर
रखने के लिये पर्याप्त जगह मिल सकेगी। लॉजिस्टिक पार्क में परिवहन की भी व्यवस्था रहेगी।
बिहार के नौ ज़िलों के भूजल में मिला यूरेनियम
9 अक्टूबर, 2022 को जारी केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के नौ ज़िलों के भूजल में यूरेनियम की मात्रा
निर्धारित सीमा से अधिक होने का पता चला है।
प्रमुख बिंदु
केंद्रीय भूजल बोर्ड ने राज्य में पानी की गुणवत्ता मापने के लिये विभिन्न ज़िलों से भूजल के 634 नमूने लिये थे, जिनमें 11 नमूनों में यूरेनियम
30 पीपीबी से अधिक मिला।
जिन ज़िलों में यूरेनियम 30 पीपीबी से अधिक मिला वे हैं- सारण, भभुआ, खगड़िया, मधेपुरा, नवादा, शेखपुरा, पूर्णिया, किशनगंज और
बेगूसराय।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि 30 पीपीबी से अधिक यूरेनियम वाले नमूने जाँच के लिये लखनऊ भेजे गए हैं। वहीं, बोर्ड ने
इसके लिये जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से भी मदद मांगी है। दोनों संस्थान मिलकर यूरेनियम के बारे में पता लगाएंगे।
विदित है कि राज्य में यूरेनियम को लेकर इससे पहले भी सर्वे हो चुका है। यूनिर्वसिटी ऑफ मैनचेस्टर और महावीर कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट
ने एक अध्ययन किया था, जिसमें सुपौल, गोपालगंज, सिवान, सारण, पटना, नालंदा, औरंगाबाद, गया और जहानाबाद से लिये गये नमूने में
यूरेनियम मिला था।
निर्धारित मात्रा से अधिक यूरेनियम शरीर में जाने से किडनी की बीमारी हो सकती है। वहीं, यूरेनियम वाले पानी के सेवन से थाइराइड कैंसर,
रक्त कैंसर, बोन मैरो डिप्रेशन और अन्य गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। इससे बच्चों को भी कैंसर होने का खतरा रहता है।
बिहार के 10 हज़ार गाँवों मेंलगेगा 300 फीट गहरा चापाकल
10 अक्टूबर, 2022 को बिहार के पीएचईडी (Public Health Engineering Department) विभाग ने बताया कि राज्य
के ग्रामीण इलाकों में पानी उपलब्ध कराने के लिये 10 हज़ार गाँवों में एक-एक चापाकल लगाए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
प्रमुख बिंदु
विभाग के अनुसार राज्य के ग्रामीण इलाकों में पानी की किल्लत दूर करने के लिये 10 हज़ार गाँवों में एक-एक चापाकल लगाया जाएगा,
जिसकी गहराई 300 फीट होगी।
पीएचईडी चापाकल लगाने के लिये 10 हज़ार ऐसे गाँवों का चयन करेगा, जहाँ पर लोगों को 12 महीना और 24 घंटे नियमित पानी मिलता
रहे।
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गाँवों में चापाकल लगाए जाने की योजना की स्वीकृति के लिये जल्द ही प्रस्ताव को कैबिनेट भेजा
जाएगा। प्रस्ताव को स्वीकृति मिलने के बाद ऐसे गाँवों का चयन होगा, जहाँ चापाकल लगाए जाएँगे। इस योजना को पूरा करने के लिये
लगभग छह माह का लक्ष्य रखा जाएगा।
विभाग ने अगले 50 वर्ष को देखते हुए 300 फीट गहरा चापाकल लगाने का यह निर्णय लिया है, ताकि लोगों को हर मौसम में ज़रूरत का
पानी मिलता रहे।
अधिकारियों के मुताबिक बिहार में लोगों तक हर घर नल का जल पहुँचाया जा रहा है। इसके बावजूद ऐसे टोले और गाँव को चिह्नित कर
वहाँ के भूजल के स्तर को देखते हुए चापाकल लगाया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि राज्य में अभी साढ़े आठ लाख चापाकल कार्यरत् हैं, जिनसे लोगों को पानी मिल रहा है। इन सभी चापाकलों का जिओ
टैगिंग किया गया है, ताकि चापाकल के नियमित संचालन की नियमित रूप से पूरी निगरानी हो सके। वहीं, चापाकल नियमित काम कर रहा
है या नहीं, इसको लेकर टोले के वैसे तीन लोगों से हस्ताक्षर लिया जाता है, जिनके घर के आसपास चापाकल लगाया गया है।
बिहार का जहानाबाद 100% डिजिटल बैंकिंग वाला पहला ज़िला बना
11 अक्टूबर, 2022 को भारतीय रिज़र्व बैंक और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से बिहार का जहानाबाद ज़िला पहला 100 फीसदी
डिजिटल बैंकिंग वाला ज़िला बन गया है।
प्रमुख बिंदु
राज्य में लोगों को घर-बैठे बैंकिंग सुविधा का लाभ देने के लिये डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि हर ज़िला, हर कस्बा
और हर पंचायत डिजिटल हो सक। इस दिशा में भारतीय रिज़र्व बैंक और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से पायलट प्रोजेक्ट के रूप
में बिहार के तीन ज़िलों मंन डिजिटल बैंकिंग को लेकर अभियान चलाए जा रहे हैं |
डिजिटल बैंकिंग के इस अभियान के प्रतिफल के रूप में जहानाबाद ज़िला पहला 100 फीसदी डिजिटल बैंकिंग वाला ज़िला बन गया है
और जल्द ही अरवल तथा शेखपुरा शत-प्रतिशत डिजिटल बैंकिंग वाले ज़िला बनने वाले हैं।
जहानाबाद ज़िले में कुल 1035126 सक्रिय खाताधारकों में से 1031235 के पास कम-से-कम एक डिजिटल बैंकिंग उत्पाद, यानी इंटरनेट
बैंकिंग, डेबिट कार्ड, मोबाइल बैंकिंग, यूपीआइ और दूसरी इसी तरह की सुविधाएँ हैं। यह कुल सक्रिय खाता का 65 फीसदी है। करेंट खाता
में करीब 17944 खाता हैं, जिनमें 11887 खाताधारक इंटरनेट बैंकिंग, 4452 पोओएस या क्यूआर कोड और 8450 मोबाइल बैंकिंग सेवा का
उपयोग करते हैं।
अरवल में 609662 बैंक खाते हैं, जिनमें से 552221 सक्रिय बैंक खाते हैं। इसका लगभग 58% डिजिटल उत्पाद से जुड़े हुए हैं, जबकि
शेखपुरा में अभी तक 89.18% खाते डिजिटल उत्पाद से जुड़े हैं।
वित्तीय लेन-देन में डिजिटल पेमेंट सिस्टम की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कैश ढोने की ज़रूरत नहीं होती है। कार्ड से पेट्रोल खरीदने
से लेकर, रेल टिकट, हाइवे पर टोल और बीमा खरीदने जैसी कई तरह की छूट भी मिलती हैं।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2019 में देश के प्रत्येक राज्य में कम-से-कम एक ज़िला को सौ फीसदी डिजिटल
बैंकिंग सेवा वाला ज़िला बनाने का निर्णय लिया था।
इसी के तहत बिहार में जहानाबाद ज़िला का चयन किया गया और राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति ने सभी हिस्सेदार (स्टेकहोल्डर) के साथ
रणनीति बनाकर काम किया और जहानाबाद डिजिटल बैंकिंग वाला ज़िला घोषित किया गया है।
बिहार में 87 नए कोर्स स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना केदायरेमेंलाए जाएंगे
12 अक्टूबर, 2022 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बिहार के कृषि, चिकित्सा, श्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, उच्च शिक्षा
सहित सात विभागों से ली गई राय के बाद स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड स्कीम के दायरे में 87 नये कोर्स लाए जा रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
ये 87 नये कोर्स लेदर, फैशन और टैक्सटाइल डिजाइन के स्नातक/स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में लाए जा रहे हैं। अब इन सभी कोर्स की पढ़ाई के
लिये भी लोन मिलेगा। स्कीम के नीतिगत फैसलों पर निर्णय लेने के लिये शिक्षा विभाग की उच्चस्तरीय समिति ने औपचारिक प्रस्ताव तैयार
कर लिया है। 87 नये कोर्स के लिये लोन की पूरी कवायद अक्टूबर तक पूरी की जाएगी।
ज्ञातव्य है कि राज्य में अभी तक 42 कोर्स में छात्रों को पढ़ाई के लिये लोन मिलता है। अगर इन 87 नये कोर्स को मंज़ूरी मिलती है, तो कुल
129 कोर्स की पढ़ाई के लिये लोन मिल सकेगा।
विभागीय जानकारों के मुताबिक इस लोन स्कीम में चार वर्षीय बैचलर ऑफ एग्रीकल्चर, मास्टर ऑफ एग्रीकल्चर, बीएड, डीएलएड, एग्री
बिजनेस में एमबीए और बीबीएम (चार वर्षीय कोर्स), एम. ए. मास कम्युनिकेशन, एमएससी स्टैटिक्स एंड कंप्यूटिंग, वोकेशनल कोर्स में
मेडिकल इलेक्ट्रो फिजियोलॉजी, साइंस टेक्नोलॉजी, आईटीआई और स्किल संबंधी तमाम विषय शामिल किये जा रहे हैं। सर्वाधिक 16
पाठ्यक्रम स्वास्थ्य से संबंधित हैं। इनमें बीएससी एंडोस्कोपी, एंडोस्कोपी टेक्नोलॉजी, बीएससी रेडियो थेरेपी आदि शामिल हैं।
इसके साथ ही स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड स्कीम के तहत 127 नये कॉलेजों को और जोड़ा जा रहा है। दरअसल, कॉलेजों ने इस स्कीम के तहत
ऑनलाइन आवेदन किये थे। इसमें राज्य के बाहर के 121 कॉलेज हैं, जिन्हें नैक, एनबीए और एनआईआरएफ रैंकिंग हासिल हैं।
स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड स्कीम के तहत पाठ्यक्रम की प्रकृति के हिसाब से लोन कम और अधिक करने पर भी विचार चल रहा है। अभी बीए
और दूसरे पारंपरिक विषय के लिये भी चार लाख और दूसरे विशेष विषयों के लिये भी चार लाख रुपए समान रूप से दिये जाते हैं। इसके
कारण कॉलेजों ने अच्छी-खासी फीस बढ़ा रखी है।
विभाग चाहता है कि साधारण विषयों की पढ़ाई के लिये लोन राशि घटायी जाए। वहीं, एनआइटी और दूसरे केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के
तकनीकी कोर्स की पढ़ाई की लोन राशि बढ़ाकर छह लाख की जा सकती है।
राज्य के अंदर इस स्कीम में नैक/एनबीए/एनआइआरएफ की रैंकिंग वाले कॉलेजों को ही पात्र मानने पर विचार जारी है।
देश के बाहर के शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के लिये लोन दिया जायेगा। इसमें 50 लाख रुपए से ऊपर का लोन प्रस्तावित है। लाभार्थियों की
संख्या के लिये कोटा तय होगा।
उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 तक 36167 आवेदकों को 756.49 करोड़ रुपये बाँटे गए हैं। वहीं अप्रैल 2022 से 18
सितंबर तक 36924 विद्यार्थियों को बतौर लोन 628.80 करोड़ बाँटे गए हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में एक लाख विद्यार्थियों को लोन बाँटने का
लक्ष्य रखा गया है।
बिहार के सभी ज़िलों में खुलेंगे 50-50 बेड के बालिका रक्षा गृह
15 अक्टूबर, 2022 को बिहार राज्य के समाज कल्याण विभाग द्वारा निर्णय लिया गया कि राज्य के सभी ज़िलों में एक-एक बालिका रक्षा
गृह खोला जाएगा। समाज कल्याण विभाग ने इस संबंध में ज़िलों में ज़मीन चिह्नित करने के लिये सभी डीएम को पत्र भेजा है।
प्रमुख बिंदु
विदित है कि पूर्वसे पटना में एक रक्षा गृह का संचालन हो रहा है। नए रक्षा गृह में एक साथ 50 लड़कियों के रहने की व्यवस्था की जाएगी।
सभी ज़िलों में खुलने वाले गृह के लिये जगह का भी चयन शुरू किया गया है, ताकि निर्माण का काम जल्द शुरू होकर, अगले एक साल
में इसे पूरा कर लिया जाए।
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक सभी बालिका गृह में रहने वाली लड़कियों से बातचीत कर उनके द्वारा बताई गई परेशानियों के समाधान
के आधार पर ही अधिकारियों ने ब्योरा तैयार कर विभाग को सौंप दिया है, जिसके बाद सभी ज़िलों में रक्षा गृह शुरू करने का निर्णय लिया
गया।
जानकारी के मुताबिक होम में दो तरह की लड़कियों को रखा जाता है, जिसमें एक ऐसी लड़कियाँ होती हैं, जो बिल्कुल अकेली हैं और
उनका कोई परिवार नहीं है। वहीं, दूसरी वैसी लड़कियाँ, जो किसी तरह से घर से भागी हुई या खोई हुई होती हैं। इन दोनों का रहन-सहन
बिल्कुल अलग होता है।
इस परिप्रेक्ष्य में विभाग के स्तर पर प्रस्ताव तैयार हो गया है, जिस पर विभागीय मंत्री की भी सहमति मिल गई है। इस प्रस्ताव को सरकार के
पास भेजा जाएगा और वहाँ से अनुमति मिलने के बाद दिसंबर से इसको लेकर काम शुरू हो जाएगा।
बिहार में अति पिछड़ा वर्ग आयोग गठित
19 अक्टूबर, 2022 को राज्य सरकार ने जदयू के वरिष्ठ नेता डॉ. नवीन चंद्र आर्या की अध्यक्षता में अतिपिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया।
यह आयोग सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार निकाय चुनाव में अतिपिछड़ों के लिये आरक्षण की अनुशंसा करेगा।
प्रमुख बिंदु
आयोग के अन्य सदस्यों में अरविंद निषाद, विनोद भगत, ज्ञानचंद्र पटेल एवं तारकेश्वर ठाकुर शामिल हैं। पहली बार इस आयोग का गठन
2006 में किया गया था। आयोग को रिपोर्ट देने के लिये अधिकतम तीन महीने का समय दिया गया है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 19 अक्टूबर को पटना हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि वह अतिपिछड़ा वर्ग आयोग (ईबीसी
कमीशन) से अतिपिछड़ों की स्थिति का आकलन कराने के बाद विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद हाईकोर्ट
का 4 अक्टूबर का फैसला यथावत रह गया।
राज्य सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान यह पक्ष रखा गया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने
स्पष्ट किया कि ईबीसी कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद बिहार के निकाय चुनाव कराए जाएंगे।
इसके लिये 2005 में अस्तित्व में आए बिहार ईबीसी आयोग को बतौर डेडिकेटेड कमीशन पुनर्जीवित किया गया है। आयोग जल्द अतिपिछड़ों
के राजनीतिक पिछड़ेपन से जुडे+ आँकड़ेजुटा कर अपनी रिपोर्टसौंप देगा। रिपोर्ट के अवलोकन के बाद ही राज्य निर्वाचन आयोग बिहार
में निकाय चुनाव अधिसूचित करेगा।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव में तभी पिछड़े वर्ग को आरक्षण दिया जा सकता
है, जब सरकार ट्रिपल टेस्ट कराए। सरकार ये पता लगाए कि किस वर्ग को पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है।
मुख्यमंत्री ने राज्य में 224.19 करोड़ रुपए की लागत से 24 योजनाओं का किया लोकार्पण
21 अक्टूबर, 2022 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना स्थित ज्ञान भवन से राज्य में 24 योजनाओं का लोकार्पण किया।
प्रमुख बिंदु
मुख्यमंत्री ने राज्य में 24 योजनाओं का लोकार्पण के साथ ही 2 चिकित्सा महाविद्यालयों का ऑनलाइन शिलान्यास भी किया, जिनमें एक
बक्सर में राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल 515 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जाएगा। इसके अलावा बेगूसराय में भी
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय और अस्पताल बनेगा।
मुख्यमंत्री ने इस दौरान बिहार में डिजिटल हेल्थ योजना का शुभारंभ भी किया तथा 9469 चयनित स्वास्थ्य कर्मियों को नियुक्त-पत्र भी वितरित
किये।
बिहार सरकार का बड़ा ऐलान, प्रत्येक किसान परिवार को मिलेंगे 3500 रुपए
22 अक्तूबर, 2022 को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस वर्ष सूखे का सामना कर रहे ज़िलों के प्रत्येक किसान परिवार को 3500
रुपए देने का फैसला किया है। सरकार के आदेश के मुताबिक किसानों के खाते में ये राशि छठ त्योहार से पहले भेज दी जाएगी।
प्रमुख बिंदु
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर साझा जानकारी के मुताबिक, राज्य के 11 सूखाग्रस्त ज़िलों के 96 प्रखंडों की
937 पंचायतों के 7841 राजस्व ग्रामों एवं इसके अंतर्गत आने वाले सभी गाँव, टोलों तथा बसावटों के सभी प्रभावित परिवारों को विशेष
सहायता के रूप में 3500 रुपए उनके बैंक खाते में ट्रांसफर किये जा रहे हैं। कोई भी प्रभावित परिवार छूटे नहीं, अधिकारियों को इसका ध्यान
रखने को कहा गया है।
विदित है कि इस साल उत्तर भारत के कई राज्यों में कम वर्षा के चलते किसानों पर सूखे की मार पड़ी है। बिहार भी इससे अछूता नहीं है।
समय से वर्षा नहीं होने के चलते एक तो धान की बुवाई में देरी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों ने किसी तरह से धान की बुवाई कर भी
दी तो फसल सूख जाने की वजह से उनकी उपज पर मार पड़ी है। ऐसे में कई परिवारों के सामने जीवनयापन का संकट आ गया है। ऐसे में
बिहार सरकार का ये फैसला उनके राज्य के किसानों के लिये राहत लेकर आया है।
बिहार के साथ ही उत्तर प्रदेश के भी 62 ज़िलों को सूखे की मार झेलनी पड़ी थी। यहाँ भी किसानों की उपज बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
किसानों को नुकसान से उबारने के लिये अब सरकार दलहन-तिलहन के बीजों को मुफ्त में बाँट रही है। वहीं, राजस्थान और झारखंड जैसे
राज्यों में किसानों पर सूखे की मार पड़ी है।
बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग का गठन
26 अक्टूबर, 2022 को बिहार सरकार ने बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग का गठन कर दिया है। इस आयोग में अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी
चक्रपाणि हिमांशु को दी गई है, जबकि राजीव कांत मिश्रा को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
प्रमुख बिंदु
बिहार सरकार के श्रम संसाधन विभाग ने आयोग के गठन की अधिसूचना जारी कर दी है।
बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग 22 सदस्यीय है। इसमें रानीगंज के विधायक अचमित ऋषिदेव, मसौढ़ी की विधायक रेखा देवी और
औरंगाबाद के विधायक आनंद शंकर सिंह को शामिल किया गया है, जबकि सदस्यों में विधान पार्षद सौरभ कुमार और रविंद्र प्रसाद सिंह
भी शामिल किये गए हैं।
इसके अलावा 10 पदेन सदस्य और विभिन्न हितों/वर्गों के 5 सदस्य होंगे।
इस आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत सभी सदस्यों का कार्यकाल भी तीन वर्षों का होगा।
बिहार के स्कूलों के लिये तैयार हो रहा बहु-भाषीय शब्दकोश
27 अक्टूबर, 2022 को बिहार एससीइआरटी के निदेशक सज्जन राज शेखर ने बताया कि राज्य शिक्षा विभाग जनजातीय भाषाओं को सहेजने
के लिये एक रोडमैप बनाने के साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाने हेतु बिहार में क्षेत्रीय भाषाओं/ बोलियों में कक्षा एक से
प्लस टूतक की पढ़ाई के लिये बहु-भाषीय शब्दकोश तैयार कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
बिहार एससीइआरटी के निदेशक ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत बिहार में क्षेत्रीय भाषाओं/बोलियों में कक्षा एक से प्लस टूतक की
कक्षाओं को पढ़ाने की रणनीति यह होगी कि मातृभाषा (मदरटंग) में अभ्यस्त स्कूली बच्चे को तमाम विषयों की पढ़ाई उसी की मातृभाषा
में पढ़ाई जाए, ताकि वह समझ सके कि उसकी मातृभाषा में संबंधित विषयों के शब्दों या संबंधित अवधारणा को क्या कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि कक्षा एक से प्लस टूतक की पढ़ाई के लिये बहु-भाषीय शब्दकोश तैयार करने के पीछे का मकसद क्षेत्रीय बोलियों में
पढ़ाते-समझाते हुए छात्रों को मुख्यधारा में लाना है, ताकि उच्च शिक्षा में वह भाषा आधारित पिछड़ेपन का शिकार न हों तथा विशेषतौर पर
उसका उच्चारण भी बेहतर करने पर ज़ोर दिया जाएगा। इस संदर्भ में शिक्षा विभाग ने विशेषरूप से एससीइआरटी को दिशा-निर्देश भी दिये
हैं।
इसके तहत बिहार की स्थानीय बोलियों एवं भाषाओं का एक शब्दकोश तैयार किया जाएगा, जिसमें किसी विषय सामग्री को मातृभाषा में
उच्चारण वाले शब्द और उससे संबंधित अंग्रेज़ी-हिन्दी के शब्द शामिल किये जाएंगे।
शब्दकोश के अलावा एक विशेष रिसोर्स मैटेरियल भी बनाया जाएगा और यह सामग्री शिक्षकों को दी जाएगी, जिससे शिक्षकों को इसमें
प्रशिक्षित किया जाएगा। यहाँ शिक्षक बच्चों को विषय मातृभाषा में पढ़ाएगा और इस तरह से अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही, मैथिली
आदि क्षेत्रीय भाषाओं में मुख्य धारा के विषय पढ़ाने की कवायद की जाएगी और यह कवायद अगले सत्र तक ही संभव हो सकेगी।
ज्ञातव्य है कि बिहार की कुल जनसंख्या में एक फीसदी से कुछ ही अधिक अनुसूचित जनजातियाँ हैं तथा अनुसूचित जाति (वनवासी
समुदाय) की मुख्य भाषाएँ मसलन मुंडारी, सदानी, संथाली, मुंगरी, गाराइत, चेरो आदि भाषाएँ हैं। विभिन्न कारणों से ये भाषाएँ बेहद
संकटग्रस्त हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में खौंड, बेड़िया, संथाल, खैरवार, गोराइत, कोरवा, मुंडा आदि वनवासी जातियाँ चंपारण, रोहतास, शाहाबाद,
पूर्णिया, भागलपुर, सहरसा, भोजपुर, मुंगेर, जमुई, कटिहार और बक्सर आदि ज़िलों में रहती हैं।
लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा योजना से विधवाओं को मिलेगी 3600 रुपए सालाना पेंशन
30 अक्टूबर, 2022 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बिहार में सामाजिक न्याय और समाज कल्याण विभाग द्वारा विधवाओं के
आर्थिक संकट को दूर करने की कोशिश में ‘लक्ष्मीबाई सोशल सिक्योरिटी योजना’ का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
‘लक्ष्मीबाई सोशल सिक्योरिटी योजना’ का मुख्य उद्देश्य पति की मौत के बाद परिवार चलाने में आने वाली आर्थिक समस्या को दूर करना
है। इसके तहत विधवा महिलाओं को हर माह 300 रुपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराती है।
बिहार सरकार की इस योजना का लाभ आर्थिक रूप से कमज़ोर विधवा महिलाएँ ले सकती हैं। इस योजना का लाभ लेने के लिये सालाना
आय 60 हज़ार से कम होनी चाहिये तथा आवेदक के पास BPL कार्ड हो और उसे किसी भी प्रकार की पेंशन न मिल रही हो। इसके लिये
आवेदक का स्थायी निवास प्रमाण-पत्र बिहार का हो और नजदीकी पोस्ट ऑफिस में आवेदक का खाता होना अनिवार्य है।
इस योजना के लिये आवेदक को प्रखंड कार्यालय के लोक सेवा अधिकार काउंटर पर ऑफलाइन आवेदन करना होगा तथा वहाँ से फॉर्म
प्राप्त कर ऑफिस में डाक्यूमेंट्स को संलग्न करके जमा करना होगा। फॉर्म के सत्यापन के बाद महिला को आगे की प्रक्रिया और पेंशन की
जानकारी दी जाएगी।
Leave a comment